करवा चौथ व्रत कथा-karva chauth vrat katha



करवा चौथ व्रत कथा-karva chauth vrat katha


करवा चौथ का व्रत हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व रखता है। यह व्रत सुहागन महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। karva chauth vrat katha का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों और लोक कथाओं में मिलता है। इस लेख में हम करवा चौथ व्रत कथा karva chauth vrat katha को विस्तार से जानेंगे और इसके महत्त्व को समझेंगे।
Karva chauth


करवा चौथ व्रत का महत्व

करवा चौथ का व्रत खासतौर पर उत्तर भारत में मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं सुबह से लेकर रात तक उपवास करती हैं और चंद्रमा को देखकर व्रत तोड़ती हैं। इस पर्व में करवा चौथ व्रत कथा सुनने का भी विशेष महत्व है, जो व्रत को पूर्ण और सफल बनाती है।

करवा चौथ व्रत karva chauth vrat katha की शुरुआत

करवा चौथ का व्रत हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले सरगी खाती हैं, जो उनकी सास द्वारा दी जाती है। सरगी खाने के बाद महिलाएं दिनभर अन्न और जल का त्याग करती हैं। शाम को पूजन कर चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण करती हैं।

करवा चौथ व्रत कथा


करवा चौथ व्रत कथा karva chauth vrat katha के बिना इस पर्व की पूर्णता नहीं मानी जाती। पुरानी मान्यता के अनुसार, एक बार एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। बेटी का नाम वीरावती था। जब वीरावती की शादी हुई, तो उसने पहली बार अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। लेकिन व्रत के दौरान उसे बहुत तेज भूख और प्यास लगने लगी।

उसके भाइयों ने देखा कि उनकी बहन बेहद कमजोर हो रही है, तो उन्होंने एक चाल चली। भाइयों ने एक पेड़ की ओट में दीप जलाकर चंद्रमा का आभास कराया और वीरावती को कहा कि चंद्रमा निकल आया है। वीरावती ने इसे सच मानकर चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत तोड़ दिया। जैसे ही उसने व्रत तोड़ा, उसका पति गंभीर रूप से बीमार हो गया। तब एक साध्वी ने वीरावती को बताया कि उसने अधूरा व्रत तोड़ा है, जिसके कारण उसके पति की यह हालत हुई है। साध्वी ने वीरावती को पुनः करवा चौथ व्रत करने की सलाह दी। अगले वर्ष वीरावती ने पूरी श्रद्धा से व्रत रखा और उसके पति स्वस्थ हो गए।

karva chauth vrat katha करवा चौथ पूजा विधि


करवा चौथ के दिन महिलाएं पूरे विधि-विधान से पूजा करती हैं। पूजा के लिए करवा (मिट्टी का बर्तन), धूप, दीप, चंदन, चावल, मिठाई, और पानी का पात्र आवश्यक होता है। करवा चौथ व्रत कथा सुनने के बाद महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं। पूजा के दौरान महिलाएं करवा चौथ की कथा का पाठ करती हैं और एक-दूसरे को सुहाग की वस्तुएं देती हैं।

karva chauth vrat के दिन पहनावे का महत्त्व

इस दिन महिलाएं विशेष रूप से सजती-संवरती हैं और शादी के जोड़े या सुहाग के प्रतीक वस्त्र पहनती हैं। लाल, पीला और हरा रंग इस दिन के लिए शुभ माना जाता है। करवा चौथ के दिन सोलह श्रृंगार करने का भी विशेष महत्त्व है, जो पति के प्रति समर्पण और प्रेम को दर्शाता है।

करवा चौथ और चंद्र दर्शन

करवा चौथ व्रत का पारण तब तक नहीं होता जब तक महिलाएं चंद्रमा का दर्शन न कर लें। चंद्रमा के दर्शन के बाद महिलाएं छलनी के माध्यम से पहले चंद्रमा और फिर अपने पति का चेहरा देखती हैं। इसके बाद पति के हाथ से पानी पीकर और अन्न ग्रहण कर व्रत तोड़ा जाता है।

करवा चौथ का आधुनिक महत्त्व


आज के समय में भी karva chauth vrat का महत्त्व वही है जो सदियों पहले था। हालांकि, आजकल महिलाएं करवा चौथ को केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम और समर्पण को प्रदर्शित करने के अवसर के रूप में भी देखती हैं। इस व्रत का पालन करना केवल परंपरा का हिस्सा नहीं, बल्कि यह पति-पत्नी के बीच आपसी विश्वास और प्यार को और गहरा बनाता है।

निष्कर्ष

करवा चौथ व्रत कथा इस पर्व की आत्मा है, जिसे सुनने से व्रत की पूर्णता मानी जाती है। यह व्रत न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूती देने का भी एक सुंदर जरिया है। इस दिन महिलाएं पूरे दिल से अपने पति की लंबी आयु और खुशहाल जीवन की कामना करती हैं। करवा चौथ व्रत कथा karva chauth vrat katha और इसके पीछे की मान्यता इस पर्व को और भी विशेष बनाती है।
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