Vidyalaya Merger पर भड़का Shaikshik Mahasangh, DG ko सौंपा गया ज्ञापन

विद्यालय मर्जर नीति के विरोध में राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ का ज्ञापन | Basic Shiksha UP

राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने विद्यालय मर्जर नीति के विरोध में महानिदेशक स्कूल शिक्षा को सौंपा ज्ञापन

लखनऊ | 24 जून 2025 — शिक्षा मानव-निर्माण की प्रथम सीढ़ी है; आज का बच्चा ही कल का नागरिक होगा। इसी विश्वास के साथ राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ (Primary Wing) के प्रतिनिधिमंडल ने महानिदेशक स्कूल शिक्षा श्रीमती कंचन वर्मा से भेंट कर विद्यालय मर्जर (School Merger / युग्मन) नीति पर कड़ा विरोध दर्ज किया और उसे तुरंत वापस लेने की मांग की।



बैठक का सारांश

  • ज्ञापन में स्कूल बंद करने के बजाए बेसिक शिक्षा सुधार को संकल्प के रूप में अपनाने पर ज़ोर।
  • RTE Act 2009 एवं NEP 2020 की “हर बच्चे तक नज़दीकी स्कूल” भावना पर सीधा आघात बताकर आदेश रद्द करने की मांग।
  • कम नामांकन के मूल कारण—आधारभूत सुविधाओं का अभाव, शिक्षकों की कमी, गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ—को दूर करने के सुझाव।

प्रमुख वक्ताओं के बयान

अजीत सिंह (प्रदेश अध्यक्ष)

“परिषदीय विद्यालयों को ‘आर्थिक घाटे’ नहीं, भारतीय संस्कृति व जीवन-मूल्य का केंद्र मानकर सशक्त करना होगा।”

भगवती सिंह (प्रदेश महामंत्री)

“शिक्षा का अधिकार अधिनियम केवल सरकारी आदेश नहीं; यह संविधान की आत्मा है। विद्यालय मर्जर उससे सीधा टकराव है।”

शिवशंकर सिंह (प्रदेशीय संगठन मंत्री)

“नामांकन घटने का कारण ‘मर्जर योग्य संख्या’ नहीं, बल्कि सुविधाओं की कमी और अनाप-शनाप गैर-शैक्षणिक ड्यूटी है।”

मातादीन द्विवेदी (प्रदेशीय कार्यकारी अध्यक्ष)

“हर प्राथमिक विद्यालय में पर्याप्त कक्षा-कक्ष, पुस्तकालय, स्मार्ट क्लास, लैब, खेल-मैदान, विषय-विशेषज्ञ शिक्षक व क्लर्क की नियुक्ति अनिवार्य हो।”

विद्यालय मर्जर नीति — विवाद के प्रमुख कारण

1. शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 का उल्लंघन

RTE की धारा 6-8 हर बच्चे को 1 किमी के भीतर प्राथमिक स्कूल और 3 किमी के भीतर उच्च प्राथमिक स्कूल की गारंटी देती है। मर्जर से यह दूरी बढ़ेगी।

2. आधारभूत सुविधाओं का अभाव

2018-2024 के सरकारी आँकड़ों में 37 % प्राथमिक विद्यालय एक भी usable शौचालय के बिना और 29 % लाइब्रेरी-रहित हैं; इससे अभिभावक निजी स्कूल चुनते हैं।

3. घटता नामांकन व प्राइवेट स्कूलों का उभार

प्रवेश आयु-मानक (6 वर्ष) तथा आंगनवाड़ी-प्री-प्राइमरी का कमजोर क्रियान्वयन निजी स्कूलों को मुफ्त में बाजार देता है।

राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ की मुख्य मांगें

  1. विद्यालय मर्जर आदेश तत्काल निरस्त किया जाए।
  2. प्रत्येक विद्यालय में बुनियादी संरचना + ICT लैब + पुस्तकालय का बजट प्रावधान।
  3. प्रति कक्षा एक शिक्षक + स्थायी प्रधानाध्यापक नियुक्ति।
  4. गणित, विज्ञान, अंग्रेज़ी, तकनीकी शिक्षा हेतु विषय-विशेषज्ञ शिक्षकों के पद सृजित हों।
  5. शिक्षकों को चुनाव व सर्वे जैसे गैर-शैक्षणिक कार्यों से मुक्त किया जाए।

निष्कर्षजनभागीदारी से ही संभव है गुणवत्तापूर्ण शिक्षा

विद्यालय मर्जर के विरुद्ध यह संघर्ष केवल शिक्षकों का नहीं; लाखों छात्र-अभिभावकों के भविष्य का प्रश्न है। अगर आप भी “बेसिक शिक्षा बचाओ, बच्चा बचाओ” मुहिम से सहमत हैं, तो इस लेख को साझा करें, स्थानीय विधायकों को पत्र लिखें और #StopSchoolMerger हैशटैग के साथ अपनी आवाज़ उठाएँ।


लेखक / संपर्क — बृजेश श्रीवास्तव
प्रदेशीय मीडिया प्रभारी, प्राथमिक संवर्ग


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